दुविधा में हूँ
१६)
” दुविधा में हूँ ”
दुविधा में हूँ
क्या करूँ, क्या न करूँ??
देखता हूँ सड़क पर
लड़ते हुए किसी को
बस सोचता रह जाता हूँ
मना करूँ या खड़ा रहूँ
दुविधा में हूँ
क्या करूँ क्या न करूँ??
देखता हूँ किसी को
थूकते यहाँ -वहाँ
या फेंकते हुए कचरा
बस सोचता रह जाता हूँ
कि डाँट दूँ या डरा दूँ
दुविधा में हूँ कि
क्या करूँ क्या न करूँ??
देखता हूँ किसी को
सरेराह छेड़ते हुए
किसी लड़की को,
या धमकाते हुए
किसी लाचार को,
सोचता रह जाता हूँ कि
तमाशबीन बने रहूँ या
विरोध करूँ
दुविधा में हूँ कि
क्या करूँ क्या न करूँ??
देखता हूँ लोगों को
नदियों में कचरा फेंकते हुए
या मूर्तियाँ विसर्जित करते हुए
या मलमूत्र बहाते हुए
सोचता रह जाता हूँ कि
टोकूँ या शिकायत करूँ
दुविधा में हूँ कि
क्या करूँ क्या न करूँ??
देखता हूँ किसी को
टेबल के नीचे से
कुछ इधर-उधर करते हुए
मिलावट करते हुए
नकली दूध-घी बनाते हुए
सोचता रह जाता हूँ कि
उनके कारनामे जगजाहिर करूँ
या कि चुप रहूँ
दुविधा में हूँ कि
क्या करूँ क्या न करूँ??
पढ़ता हूँ अखबारों में
नकली दवा बनाकर बेचनेवाले
या एक्सपायरी का लेबल बदलनेवाले
मन में आता है कि
छोटे बच्चों को ले जाकर
उन हत्यारों के सामने खड़ा करूँ
सोचता रह जाता हूँ कि
क्या करूँ क्या न करूँ??
देखता हूँ अवसरवादियों को
लोगों को लड़ाते हुए
धर्म के नाम पर
दिलों में ज़हर घोलते हुए
चाहता हूँ मोहिनी बन
अमृत बाँटता फिरूँ
सोचता रह जाता हूँ कि
क्या करूँ क्या न करूँ??
बड़ा परेशान हूँ कि
दिल की सुनूँ या दिमाग की
अपनी चिंता करूँ या
जग की या समाज की
ईसा की तरह सूली
पर चढ़ जाऊँ या
घर में दुबका रहूँ
समझ में नहीं आ रहा है कि
क्या करूँ क्या न करूँ??
क्या मैं अपाहिज़ हूँ
या दिमाग से सिफ़र??????
स्वरचित
उषा गुप्ता
इंदौर