दुविधा में हनुमान जी
व्यथा हनुमानजी की?
***************** आज घर लौटते वक्त थोड़ा लेट हो गया हमेशा की तरह मेरे दिमाग में एक डर घुसकर मुझे डराने लगा कि मुझे फिर से पहाड़ी वाले रास्ते को पार करके घर पहुंचना होगा, पर घर तो जाना ही था दिल को मजबूत करके मैं उस रास्ते से गुजरने लगा हनुमान जी का नाम जपते हुए बस अभी मैंने बीच का रास्ता पार किया था किसी ने मुझे आवाज लगाई.. ओ भाई जरा सुनना इतना सुनना था कि मेरे तो हाथ पैर ढीले हो गए और मैं वहीं खड़ा हो के कांपने लगा हिम्मत करके हनुमान जी का नाम जपते हुए पीछे मुड़कर देखने लगा तो घोर आश्चर्य के वो पल थे, मेरे सामने साक्षात हनुमान जी खड़े थे……. मुझे विस्मित देखकर उन्होंने पूछा तुम भला इतने डरे हुए परेशान से क्यों हो परेशान होने के तो मेरे दिन आए हैं,, तुम मनुष्य भला आज क्यों मेरी जाति धर्म को लेकर बवाल मचाए फिर रहे हो चलो माना तुम एक पंजाबी हो क्रिश्चियन हो मुस्लिम हो हिंदू हो पर आखिर हो तो हाड़ मास का इंसान ही ना जिसे डर लग रहा है तो वह हनुमान चालीसा पढ़ते हुए यहां से गुजर रहा है पर मैं यहां क्यों आया इसलिए नहीं कि मैं किसी जाति धर्म विशेष का रहने वाला हूं, मैं यहां आया हूं तो एक उस इंसान की आवाज पर जिसको जिसे मेरी जरूरत है मेरे लिए तुम किसी भी धर्म से आते हो इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन तुमने दिल से मुझे पुकारा क्योंकि तुम्हें डर लग रहा है। इसलिए मैं तुम्हारे पास आया हूं तो तुम इंसान भला क्यों मुझे बांट रहे हो धर्म के नाम पर जाति के नाम पर इतना कहकर हनुमान जी ने मुझे कहा चलो तुम्हें जहां तक डर लग रहा है मैं वहां तक तुम्हारे साथ चलता हूं ,फिर तुम अपने घर को चले जाना पर एक बार घर जाकर जरूर सोचना कि भगवान किसी एक धर्म या जाति के नहीं होते हैं.. वह हर उस इंसान के दिल से उठने वाली आवाज पर चले आते हैं जो उसे सच्चे मन से पुकारता है…।।।
अनु??