दुल्हन
****** दुल्हन *******
*******************
डोली में बैठी हुई है दुल्हन
सुन्दर और सलोनी दुल्हन
ख्वाबों में खोई हुई दुल्हन
सजरी और संवरी दुल्हन
बैठी बैठी सोच रही दुल्हन
गहरी सोच में सोचे दुल्हन
निज घर को छोड़े दुल्हन
सैंया घर को जाती दुल्हन
कैसे होंगे मेरे दुल्हे राजा
बजाएंगे जो प्रेम का बाजा
कैसी होगी सूरत उनकी
कद,काठी, छाती उनकी
वाणी में कुछ मीठा होगा
स्वभाव क्या रसीला होगा
घर में सब कैसे कैसे होंगें
रंग स्वर्णिम या बैरंग होंगें
मेल जोल मे प्रेमिल होंगे
रिश्तों में मैली जोली होंगे
कैसी अगली होगी टोली
वह तो पिया संग है हो ली
गत मौसम छोड चुकी थी
अगले बारे सोच रही थी
कुछ वो सहमी सहमी थी
थोड़ी बहुत वह वहमी थी
अतरंग स्वप्न सजों रही थी
मन में हर्षित हो रही थी
पिया मिलन को व्याकुल
चंचल मन था घोर आतुर
निज सोच मे रही सोचती
नाखून मुंह में वो नोचती
पिया घर के दर्शन हो गए
रीति रिवाज भी पूर्ण हुए
देवर संग हुई गोद चढाई
मस्ती में हुई खूब खिंचाई
पूरे हो गए थे रश्म रिवाज
भाभी ने लगा दी आवाज
आखिर वो पल भी आया
पिया अंदर कदम बढ़ाया
दिल की धडकनें तेज थी
बिछी सुहाग की सेज थी
हुस्न चिलमन में छिपाया
भावनाओं को था दबाया
लजाई,शरमाई सी दुल्हन
सहमी, घबराई सी दुल्हन
अचानक कुछ हटके हुआ
पिया एक दम धड़ाम गिरा
साजन नशे में चूर चूर थे
दुल्हन ख्वाब लीरो लीर थे
वह गहरी नींद में सो गए
अरमान चकनाचूर हो गए
मनसीरत,हैरान थी दुल्हन
कर्मों पर रो रही थीं दुल्हन
********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)