दुलहिन
गोरी बनि सखि सजल सिंगार,
देखि बधु केँ देखि ससुराल।
सिंदूरक रेखा माथ,
मुकुट मुकुटावल कान।
कपोल सोहावन लाल,
नयन तोर काजर काढ।
सुरंग रंग चुनरी ओढ़ल,
सेज सोहावन पाट।
कनक-कंगन, पायल झमकत,
चरण-कमल सुखसार।
श्रीहर्ष कहए सुनु सखि हे,
आएल मिलनक बेर।
बधू सजल, सखि सब गाबए,
हँसी खुशी म’ घर आँगन फेर।
—-श्रीहर्ष