दुर्योधन मतवाला
दुर्योधन मतवाला
आज टूटी हुई जन्धा लेकर पछताता था मतवाला,
ज्ञात हुआ दुर्योधन को जो पीता था विष का हाला।
रक्त से लथपथ शैल गात व शोणित सिंचित काया,
कुरुक्षेत्र की धरती पर लेटा एक नर मुरझाया।
कौन जानता था जिसकी आज्ञा से शस्त्र उठाते थे ,
जब वो चाहे भीष्म द्रोण तरकस से वाण चलाते थे ।
इधर उधर हो जाता था जिसके कहने पर सिंहासन ,
जिसकी आज्ञा से लड़ने को आतुर रहता था दु:शासन।
सकल क्षेत्र ये भारत का जिसकी क़दमों में रहता था ,
धृतराष्ट्र का मात्र सहारा सौ भ्राता संग फलता था ।
क्या धर्म है क्या न्याय है सही गलत का ज्ञान नहीं,
जो चाहे वो करता था क्या नीतियुक्त था भान नहीं।
तन पे चोट लगी थी उसकी जंघा टूट पड़ी थी त्यूं ,
जैसे मृदु माटी की मटकी हो कोई फूट पड़ी थी ज्यूं।
कुछ और नहीं था हाँ वो था एक मद का हीं तो विष प्याला,
हाँ मद का हीं विष प्याला अबतक पीता मद विष प्याला।
अजय अमिताभ सुमन