दुर्योधन का सत्कार
कैसी लगी केशव तैयारियां मेरी
कहीं रह ना गईं कोई कमी??
क्या प्रसन्नता हुई द्वारकाधीश, हमारी मेजबानी से,
भूल कर रहे हो दुर्योधन तुम,
अभी तो मैं आया बन शांतिदूत , पांडवों का,
करना सत्कार इतना ठीक नहीं,
लटक गया मुंह राजा का,
अब तुम सुनो कुछ काम कि बातें,
आदर सहित पांडवों ने भेजा यह संदेश,
हो गई आज्ञात वास भी पूरा, अब लौटा दो हमें अपना राज्य,
क्या कहते हो मोहन , युद्ध के बिना ना दुंगा उन्हें कुछ भी
अच्छा बात मान लो तुम मेरी, आधा नहीं सिर्फ दे दो पांच गांव,
सुई के नोक के बराबर धरती ना मिलेगी उन्हें,
बिना युद्ध के,
मूर्ख हो तुम दुर्योधन युद्ध कोई बच्चों कि किड़ा (खेल) नहीं,
ना जाने कितने जलेंगे घर, तुम्हारी महत्त्वकांक्षा में,
क्रोध करते हुए कान्हा ने बोला,
देख मामला बिगड़ते झठ मामा ने किया इशारा,
बात चलाओ भांजे कुछ खान पान का,
थक गई होंगे आप माधव ,
चलो विश्राम करो आप,
कुछ खान-पान हो जाए, छप्पन भोग है तैयार
कारण होते दो हि भोजन करने का,
प्रेम भावना हो दिल में या मैं तड़प रहा भूख से,
पर मेरा ऐसा कुछ हाल नहीं राजा,
और एक बात आज निमंत्रण मेरा विदुर काका के यहां,
अंचभित रह गई सभा पूरी,
जब चला ना कोई पासा ,
लगे बांधने मोहन को,
पर बांध सकता कोई क्या परमात्मा को अपने अंहकार से?
आग बबूला हो कर केशव देखाया अपनि रुप विकराल,
युद्ध कि करके उद्घोषणा , ठहरा दुर्योधन को जिम्मेदार
चले मोहन काका के घर कर प्रणाम पितामह को