Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Jul 2021 · 2 min read

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-14

​इस दीर्घ कविता के पिछले भाग अर्थात् तेरहवें भाग में अभिमन्यु के गलत तरीके से किये गए वध में जयद्रथ द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका और तदुपरांत केशव और अर्जुन द्वारा अभिमन्यु की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए रचे गए प्रपंच के बारे में चर्चा की गई थी। कविता के वर्तमान प्रकरण अर्थात् चौदहवें भाग में देखिए कैसे प्रतिशोध की भावना से वशीभूत होकर अर्जुन ने जयद्रथ का वध इस तरह से किया कि उसका सर धड़ से अलग होकर उसके तपस्वी पिता की गोद में गिरा और उसके पिता का सर टुकड़ों में विभक्त हो गया। प्रतिशोध की भवना से ग्रस्त होकर अगर अर्जुन जयद्रथ के निर्दोष तपस्वी पिता का वध करने में कोई भी संकोच नहीं करता , तो फिर प्रतिशोध की उसी अग्नि में दहकते हुए अश्वत्थामा से जो कुछ भी दुष्कृत्य रचे गए , भला वो अधर्म कैसे हो सकते थे? प्रस्तुत है दीर्घ कविता “दुर्योधन कब मिट पाया ” का चौदहवाँ भाग।
============================
निरपराध थे पिता जयद्रथ के पर वाण चलाता था,
ध्यान मग्न थे परम तपस्वी पर संधान लगाता था।
प्रभुलीन के चरणों में गिरा कटा हुआ जयद्रथ का सिर ,
देख पुत्र का शीर्ष विक्षेपण पिता हुए थे अति अधीर।
===========================
और भाग्य का खेला ऐसा मस्तक फटा तात का ऐसे,
खरबूजे का फल हाथ से भू पर गिरा हुआ हो जैसे।
छाल प्रपंच जग जाहिर अर्जुन केशव से बल पाता था ,
पूर्ण हुआ प्रतिशोध मान कर चित में मान सजाता था।
============================
गर भ्राता का ह्रदय फाड़ना कृत्य नहीं बुरा होता,
नरपशु भीम का प्रति शोध रक्त पीकर हीं पूरा होता।
चिर प्रतिशोध की अग्नि जो पांचाली में थी धधक रही ,
रक्त पिपासु चित उसका था शोला बनके भड़क रही।
============================
ऐसी ज्वाला भड़क रही जबतक ना चीत्कार हुआ,
दु:शासन का रक्त लगाकर जबतक ना श्रृंगार हुआ।
तबतक केश खुले रखकर शोला बनकर जलती थी ,
यदि धर्म था अगन चित में ले करके जो फलती थी।
=========================
दु:शासन उर रक्त हरने में, जयद्रथ जनक के वधने में ,
केशव अर्जुन ना कुकर्मी गर छल प्रपंच के रचने में।
तो कैसा अधर्म रचा मैंने वो धर्म स्वीकार किया। ,
प्रतिशोध की वो अग्नि हीं निज चित्त अंगीकार किया?
==========================
गर प्रतिशोध हीं ले लेने का मतलब धर्म विजय होता ,
चाहे कैसे भी ले लो पर धर्म पुण्य ना क्षय होता।
गर वैसा दुष्कर्म रचाकर पांडव विजयी कहलाते,
तो किस मुँह से कपटी सारे मुझको कपटी कह पाते?
============================
कविता के अगले भाग अर्थात् पन्द्रहवें भाग में देखिए अश्वत्थामा आगे बताता है कि अर्जुन ने अपने शिष्य सात्यकि के प्राण बचाने के लिए भूरिश्रवा का वध कैसे बिना चेतावनी दिए कर दिया।
=============================
अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित

Language: Hindi
1 Like · 187 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
■ भय का कारोबार...
■ भय का कारोबार...
*Author प्रणय प्रभात*
संगत
संगत
Sandeep Pande
रमेशराज के मौसमविशेष के बालगीत
रमेशराज के मौसमविशेष के बालगीत
कवि रमेशराज
हाय.
हाय.
Vishal babu (vishu)
2908.*पूर्णिका*
2908.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
न रोजी न रोटी, हैं जीने के लाले।
न रोजी न रोटी, हैं जीने के लाले।
सत्य कुमार प्रेमी
दिल तेरी राहों के
दिल तेरी राहों के
Dr fauzia Naseem shad
पीने -पिलाने की आदत तो डालो
पीने -पिलाने की आदत तो डालो
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मैं भी चुनाव लड़ूँगा (हास्य कविता)
मैं भी चुनाव लड़ूँगा (हास्य कविता)
Dr. Kishan Karigar
तुम्हें भूल नहीं सकता कभी
तुम्हें भूल नहीं सकता कभी
gurudeenverma198
नारी अस्मिता
नारी अस्मिता
Shyam Sundar Subramanian
प्यार का नाम मेरे दिल से मिटाया तूने।
प्यार का नाम मेरे दिल से मिटाया तूने।
Phool gufran
.......*तु खुदकी खोज में निकल* ......
.......*तु खुदकी खोज में निकल* ......
Naushaba Suriya
#संबंधों_की_उधड़ी_परतें, #उरतल_से_धिक्कार_रहीं !!
#संबंधों_की_उधड़ी_परतें, #उरतल_से_धिक्कार_रहीं !!
संजीव शुक्ल 'सचिन'
Everyone enjoys being acknowledged and appreciated. Sometime
Everyone enjoys being acknowledged and appreciated. Sometime
पूर्वार्थ
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
माँ की एक कोर में छप्पन का भोग🍓🍌🍎🍏
माँ की एक कोर में छप्पन का भोग🍓🍌🍎🍏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
तेरा फिक्र
तेरा फिक्र
Basant Bhagawan Roy
-अपनी कैसे चलातें
-अपनी कैसे चलातें
Seema gupta,Alwar
आप और हम
आप और हम
Neeraj Agarwal
माँ मुझे विश्राम दे
माँ मुझे विश्राम दे
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
*ट्रस्टीशिप : सनातन वैराग्य दर्शन का कालजयी विचार*
*ट्रस्टीशिप : सनातन वैराग्य दर्शन का कालजयी विचार*
Ravi Prakash
लोग आते हैं दिल के अंदर मसीहा बनकर
लोग आते हैं दिल के अंदर मसीहा बनकर
कवि दीपक बवेजा
ना प्रेम मिल सका ना दोस्ती मुकम्मल हुई...
ना प्रेम मिल सका ना दोस्ती मुकम्मल हुई...
Keshav kishor Kumar
लम्हों की तितलियाँ
लम्हों की तितलियाँ
Karishma Shah
अपने वीर जवान
अपने वीर जवान
डॉ०छोटेलाल सिंह 'मनमीत'
सहन करो या दफन करो
सहन करो या दफन करो
goutam shaw
प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
श्री राम! मैं तुमको क्या कहूं...?
श्री राम! मैं तुमको क्या कहूं...?
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
"अमीर खुसरो"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...