दुर्मिल सवैया
🙏
!! श्रीं !!
सुप्रभात !
जय श्री राधेकृष्ण !
शुभ हो आज का दिन !
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( दुर्मिल सवैया )
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घनश्याम सुनो ! कलियाँ खिलतीं, भँवरे उनको लखने लगते ।
विष बाण समान बुरी नजरें, उभरी कलियाँ तकने लगते ।।
झुक जाँय हरी ! नजरें सबकी, लख कर्म बुरे दुखने लगते ।
करिये कुछ दृश्य यहाँ बदलें, नरवीर यहाँ सपने लगते ।।
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कमला ! तुमसे विनती इतनी हर नारि यहाँ अब वीर बने ।
जिनके मन में न विकार पलें सुत सुंदर से हर नारि जने ।।
रणधीर जनें तकदीर लिखें हिचकें न चबा मुख लौह चने ।
बन जाँय यहाँ हर नारि शिवा कर की फिर से तलवार तने ।।
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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