दुर्मिल सवैया
112 112 112 112, 112 112 112 112
जिसने तुमको घर जन्म दिया, उसपे अहसान दिखावत हौ।
पितु मातु दुखी घर भूखन में, उनको नहि भोज्य खिलावत हौ।
बनते तुम वीर सुवीर बड़े, अबला पर हाथ उठावत हौ।
कहते खुद बुद्ध प्रबुद्ध सही, फिर क्यों पितु आन मिटावत हौ।
अदम्य