दुर्मिल सवैया
उद्धव से…!
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जब से वह छोड़ गये हमको सुध भूल गयीं तब से तन की ।
उर में अब एक न फूल खिले,कलियाँ सब सूख गयीं मन की ।।
अभिलाष नहीं अब शेष रहीं, बन घूम रहीं हिरनी वन की ।
मन आँगन ऊधव कौन बसे, मन याद बसी मनमोहन की ।।
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-महेश जैन ‘ज्योति’
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