दुर्मिल सवैया :– प्रथम खण्ड ॥॥
दुर्मिल सवैया छंद :– प्रथम-खण्ड
चित चोर बड़ा बृजभान सखी ॥
8 सगण / 4 पद
रचनाकार :–अनुज तिवारी “इंदवार”
॥ 01॥
अंधियारि अमावस रात भरी ।
दुविधा सुविधा बिनु जाग उठी ।
जब लाल जनी किलकारि सुनी ।
मनहारि उठी दुखियार उठी ।
सब देव सदैव सहाय बनो ।
इक पीर अधीर गुहार उठी ।
मचलाय उठी मनमोहन को ।
ममता उमड़ी लिपटाय उठी ।
॥ 02 ॥
इक रूप अनूप अनूठ धरे ।
प्रभु द्वापर में अवतार लिए ।
कर चक्र धरे धनु शारंग की ।
भुज चार सभी हथियार लिए ।
मणि कौस्तुभ शोभित थी वक्ष में ।
वनमाला विभूषित हार लिए ।
मुख श्याम सुशोभित तेज बड़ा ।
चित चंचल भाव उदार लिए ।
॥ 03 ॥
पख मोर सजा सर मस्तक में ।
इक टीक ललाट निठार लिए ।
बल पौरुष से परिपूर्ण बने ।
शिशु वेद परंगत सार लिए ।
स्त्रुति की कर जोड़ नरायण की ।
सब देव खड़े उपहार लिए ।
सुत देवकि पुष्प समर्पित है ।
शुभ अर्पित आशिष धार लिए ।
।। 04 ।।
यश , पौरुष , प्रेम कलेश मिले ।
धन , वैभव , ज्ञान विशेष मिले ।
सुख , शांति , अनंत अभाजित हो ।
युग नीति , नया उपदेश मिले ।
कर ध्यान , निवारक एक वही ।
सब सूद समेत निवेश मिले ।
शत अष्ट अलंकृत हैं धड़ ये ।
हर नाम जपे मिथलेश मिले ।
।। 05 ।।
हिय को प्रिय हो वह नाम भजो ,
मनमोहन सोहन श्याम भजो ।
जय धन्य धरा मथुरा नगरी ।
प्रभु जन्म लिए हर धाम भजो।
वशुदेव भजो जप देवकि को ।
हल-धारक हैं बलराम भजो ।
सत सत्य स्वरूप सुहावन वो।
पुरुषोत्तम हैं प्रभु राम भजो ।
।। 06 ।।
ऋषिकेश , जनार्धन , निर्गुण को ।
हरि , दीनदयाल , गुपाल भजो ।
कमलेश भजो , अवधेश भजो ।
मयुरेश भजो , महिपाल भजो ।
मुरलीघर मान मनोहर को ।
जगदीश भजो , जगपाल भजो ।
कमसांतक , शंतह , माधव को ।
भज केशव ,कृष्ण कुणाल भजो ।
।। 07 ।।
रविलोचन , योगि , सुदर्शन की ।
जय आदि ,अनादि ,सनातन की ।
यदुवेंद्र , उपेंद्र , महेंद्र भजो ।
जय बोल सुमेध , सुरेशम की ।
कमलापति ,निर्गुण ,श्रीनिधि की ।
मधुसूदन , पुंण्य , प्रजापति की ।
अजया ,अतया ,अनया ,बलि की ।
जय बोल सुरेन्द्र , दयानिधि की ।