दुर्मिल सवैया छंद
—-दुर्मिल सवैया छंद —-
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रघुनाथ कहें समुझाइ सिया न चलौ तुम संग कछारिन मा।
वन जीव भयंकर प्राणप्रिये! मग कंकर झार पहारिन मा।
पति संग न दुःख जु झेल सके हँसि बात उड़ावइ तारिन मा।
भरि ‘आस्तिक’ नैन कहे जु सिया हम नाइ पिया उन नारिन मा।
—©विवेक आस्तिक