दुमदार दोहे
दुमदार दोहे
हास्य रस
सृजन शब्द -रसोई
मुझे रसोई बोलती, आजा मेरी जान।
आँख खोल अब जाग जा, जल्दी आटा सान।।
टिफिन में डालो खाना ।
स्कूल है बच्चों जाना ।
प्राण नाथ भी जग गए, मांग रहे वो चाय।
सास ससुर की जीभ भी, सूखी जाती हाय।।
सब्र नहिँ उसको आता ।
क्लेश की जड़ है माता ।
करना सारा काम है, झाड़ पोंछ भी रोज।
जाने कैसा पेट है, किसने की है
खोज।।
लगा है दिन भर चरना।
पेट नहिँ खाली रखना।
सिकती रोटी ज्यूँ तवे, ऐसे सिकती देह।
छूट आज दे दो पिया, करते सच्चा नेह।
नहीं अब खाना बनता।
बदन है सारा जलता ।
सैर सपाटा हो कभी, आऊँ मैं भी घूम।
छूट रसोई से मिले,मैं तो गाऊँ झूम।।
ख्वाब है ये तो खाली ।
किचन को माना बाली।
आँखे होती लाल है, काटूँ जब मैं प्याज।
तेज मसाले भी लगे,होती नासा खाज।।
आँख से बहता पानी।
याद है आती नानी।
सीमा शर्मा ‘अंशु’