दुमका संस्मरण 2 ( सिनेमा हॉल )
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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वैसे मेरा जन्म 1951 में दुमका में हो चुका था ! होश संभालते ही मैंने दुमका का एक मात्र सिनेमा हॉल को काफी करीब से देखा ! इस सिनेमा हॉल को “ज्ञानदा टॉकीज” कहते थे ! बताया जाता था कि यह हॉल बहुत पुराना हुआ करता था ! मेरे घर से यह बिल्कुल करीब था ! दुमका की आवादी बहुत कम थी ! ध्वनि प्रदूषण नहीं था ! इसलिए फिल्म शुरू होने से पहले गाने लाउड स्पीकर की सुनाई देती थी ! कभी -कभी तो फिल्म का संवाद भी सुनाई देता था !
उनदिनों मनोरंजन के साधनों में सिनेमा को काफी प्रभावी मना जाता था ! लोगों में शर्त लगती थी हारने पर सिनेमा दिखाना पड़ता था ! कोई अतिथि आ जाते थे तो उनको सिनेमा दिखलाकर मनोरंजन करना पड़ता था ! ड्रामा ,नाटक ,संगीत ,सांस्कृतिक कार्यक्रम ,नटुआ नाच ,मज़मा ,सर्कस ,खेल -कूद ,कव्वाली प्रतियोगिता , थिएटर ,जादू इत्यादि मनोरंजन के साधन के बावजूद सिनेमा का महत्व अलग ही था !
बॉक्स क्लास के एक रुपये , प्रथम क्लास के बारह आना ,सेकंड क्लास के आठ आना और थर्ड क्लास के चार आना के टिकट बड़े जद्दो जहद से लेना पड़ता था ! कभी -कभी मार भी हो जाती थी ! जो जीता वही सिकंदर ! जो नहीं देख पता उसे देखकर आने वाला को दूसरे को कहानी सुना देता था ! और इस तरह सबका मनोरंजन हो जाता था !
बाद में 1964 में दुधानी में दूसरा सिनेमा हॉल “सरोजिनी टॉकीज” खुल गया ! सरोजिनी टॉकीज बाद में “अमरचित्र मंदिर” कहलाने लगा ! जब नया सिनेमा हॉल बना तो उसका नाम “मिनी अमर” रख दिया गया !
अब ज्ञानदा टॉकीज नहीं रहा ! दुमका में अब सिर्फ “मिनी अमर” है ! आज प्रर्याप्त मनोरंजन की सुविधाएं उपलब्ध हैं ! इन परिवेशों में सिनेमा सिसक रहा है और हमारी सामाजिक व्यवस्था भी चरमरा रही है !
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डॉ लक्ष्मण झा” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
07.08.2023