“दुमका दर्पण” (संस्मरण -प्राइमेरी स्कूल-1958)
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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दुमका एक छोटा शहर पहाड़ियों के बीच जंगलों से घिरा बड़ा ही मनोरम स्थान माना जाता था ! लोग एक दूसरे को जानते और पहचानते थे ! किसी अजनबी को अपनी मंज़िल तक पहुँचाने में यहाँ के लोग निपुण थे ! कोई पत्र के पते पर यदि सिर्फ नाम और दुमका लिखा होता था तो डाकिया उसके गंतव्य स्थान पर पहुँचा देते थे ! उन दिनों जिला नगरपालिका की ओर से कुछ प्राथमिक स्कूल खोले गए थे जिन्हें तत्कालीन अविभाजित बिहार राज्य से वित्तीय अनुदान भी दिये जाते थे ! दुमका शहर में –
1 “धोबिया स्कूल”,
2 मोनी स्कूल,
3 करहलबिल स्कूल,
4 मोचीपाड़ा स्कूल ,
5 बेसिक स्कूल,
6 करहलबिल स्कूल और
7 हटिया स्कूल थे !
लोगों में पढ़ने और पढ़ाने की अभिरुचि के अभाव में बच्चे बहुत कम दाखिला लेते थे ! जागरूकता के आभाव में लड़कियाँ पूरे क्लास में एक या दो ही मिलतीं थीं !
1958 में मैंने “हटिया स्कूल” में दाखिला लिया ! यह स्कूल मुख्य दुमका के मध्य मे स्थित था ! कहचरी ,प्रशासन और दुमका नगरपालिका के बीचों -बीच यह स्कूल था ! कच्ची मिट्टी की दीवार और मिट्टी के खपड़े से इसका निर्माण किया गया था ! जमीन मिट्टी की थी ! हमलोग जमीन पर ही बैठते थे ! उस समय तीन ही कमरे थे ! दो क्लास एक साथ बैठ जाता था ! हमारे हेड्मास्टर श्री अनंत लाल झा थे और तीन शिक्षक एक श्री महेश कान्त झा और दो और थे ! क्लास रूम में एक कुर्सी और एक टेबल सिर्फ शिक्षक के लिए था और सब विद्यार्थी जमीन पर बैठते थे ! हरेक शनिवार को क्लास के विद्यार्थी गाय के गोबर से सारे क्लास की लिपाई करते थे ! लड़कियाँ लिपाई करतीं थीं ! लड़के गोबर इकठ्ठा करते और दूर से पानी बाल्टी में भर कर लाते थे !
विजली नहीं होने के कारण गर्मिओं में हरेक बच्चों की ड्यूटी लगती थी ! शिक्षक के पढ़ाने के समय एक विद्यार्थी को अपने शिक्षक को पंखा झेलना पड़ता था ! यदि कोई लड़का थक जाता था तो दूसरा लड़का उसका स्थान लेता था ! पानी पीने के लिए दूर कुएं से पानी लाना पड़ता था ! स्कूल में मिट्टी के मटके रखे रहते थे ! टॉइलेट हमारे स्कूल में नहीं था ! हमें स्कूल से निकलकर दूर जाना पड़ता था ! जो नजदीक के बच्चे होते थे वे हाफ टाइम में अपने घर कुछ खा कर आ जाते थे ! मैं तो 2.5 किलोमीटर दूर से आता था ! मेरे पिता जी कुछ लेकर आ जाते थे ! स्कूल बैग के बिना ही सब स्कूल आते थे ! अपने -अपने हाथों में किताब और कॉपी साथ लाते थे !
हरेक शनिवार को अपने गुरुजी के लिए शनीचरा लाना पड़ता था ! अधिकाशतः एक दो पैसा हुआ करता था ! गुरुदेव को शनीचरा मिलने से बच्चों का ग्रह मिट जाता था अन्यथा समयानुकूल नहीं देने वाले छात्रों को उनके गलतिओं पर छड़ी की मार अधिक झेलनी पड़ती थी ! जान बूझकर स्कूल नहीं जाने पर गुरु जी चार – पाँच हट्टे -कठठ् लड़कों को उसके घर भेज कर उसे उठाकर लाते थे ! एक बार 1960 में मैं बहुत जोर से बीमार पड़ गया था ! स्कूल के अधिकांश बच्चे मुझे देखने आए साथ- साथ शिक्षकगण भी आए !
80 के दशक के बाद हमार दुमका निरंतर अपनी बुलंदिओं को छूता चला गया ! गवर्नमेंट स्कूल ,प्राइवेट इंग्लिश मिडियम स्कूल ,कॉलेज ,यूनिवर्सिटी ,मेडिकल कॉलेज ,इंजीनियरिंग कॉलेज ,डिप्लोमा इंजीनियरिंग पाली टेकनीक,सड़क,विजली ,पानी इत्यादि से परिपूर्ण होता गया परंतु अपनापन नहीं रह सका !
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
15.08.2023