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25 Jun 2019 · 1 min read

दुपट्टे पर एक गजल —आर के रस्तोगी

दुपट्टे पर एक गजल

दुपट्टा अब तो आउट ऑफ़ फैशंन हो गया |
अब तो बेचारा ये फटकर बेकार हो गया ||

समझते थे कभी इसे शर्म-हया की निशानी |
अब तो बेशर्मी का ये रूप साकार हो गया ||

लहराते थे कभी दुपट्टे को इश्क को दर्शाने में |
कैसे दिखाई दे ये अब तो अन्धकार हो गया ||

आ जाती थी कभी छत पर लाल दुपट्टा ओढ़कर |
पता चल जाता था,मोहब्बत का इजहार हो गया ||

ओढती थी दुपट्टा जब निकलती थी लडकियाँ |
पता नहीं अब क्यों ये तन से फरार हो गया ||

कंधे से जब ये सरकता तो हाथ लपक लेता |
अब तो ये सीन देखना ही दुस्वार हो गया ||

रस्तोगी ने फाड़ कर दुपट्टा,घावो पर बाँध लिया |
बांधते ही घावो पर दुपट्टा,उसका दीदार हो गया ||

आर के रस्तोगी
मो 9971006425

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