दुपट्टे पर एक गजल —आर के रस्तोगी
दुपट्टे पर एक गजल
दुपट्टा अब तो आउट ऑफ़ फैशंन हो गया |
अब तो बेचारा ये फटकर बेकार हो गया ||
समझते थे कभी इसे शर्म-हया की निशानी |
अब तो बेशर्मी का ये रूप साकार हो गया ||
लहराते थे कभी दुपट्टे को इश्क को दर्शाने में |
कैसे दिखाई दे ये अब तो अन्धकार हो गया ||
आ जाती थी कभी छत पर लाल दुपट्टा ओढ़कर |
पता चल जाता था,मोहब्बत का इजहार हो गया ||
ओढती थी दुपट्टा जब निकलती थी लडकियाँ |
पता नहीं अब क्यों ये तन से फरार हो गया ||
कंधे से जब ये सरकता तो हाथ लपक लेता |
अब तो ये सीन देखना ही दुस्वार हो गया ||
रस्तोगी ने फाड़ कर दुपट्टा,घावो पर बाँध लिया |
बांधते ही घावो पर दुपट्टा,उसका दीदार हो गया ||
आर के रस्तोगी
मो 9971006425