दुनिया
वो बेरोजगारी के ख्वाबों की दुनिया
लरजते सिसकते इरादों की दुनिया
वो सांसे थी अंतिम ये जीवन शुरू था
धुएं से भरी थी बुरादों की दुनिया
ना पूछो कि किससे जुदा हो गई हूँ
थी पलकों पे मेरी मुरादों की दुनिया ।
वो मेवों भरी मुट्ठियां मां के घर में
जुदा थी वो ममता के स्वादों की दुनिया
थे उत्तर हरेक प्रश्न के तब वहीं पर
वो कमसिन जवां सिन-दराजों की दुनिया
थे अलमस्त मौसम में खोये हुए हम
नरम दिल से अल्हड़ नवाबों की दुनिया ।
कभी कौंध जाती है दिल के मकां में
गुलों को छुपाए दराजों की दुनिया
बड़ा दृढ़ था रिश्ता खुदी का खुदी से
वो बेखौफ –बेढ्ब इरादों की दुनिया ।
था तूफां भयानक लहर पर बची थी
थे सागर पे जलते चरागों की दुनिया ।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ