दुनिया में सच के नूर का जलवा बुलन्द है
दुनिया में सच के नूर का जलवा बुलन्द है
ईमानदार शख़्स का रुतबा बुलन्द है
बातें हैं उसकी हक़ में ग़रीबों के इस क़दर
देखो तो यार उसका नज़रिया बुलन्द है
जीता है दूसरों के लिए रात दिन फ़क़त
उस शख़्स का मेयार भी कितना बुलन्द है
क़ातिल नज़र ने कर भी दिया वार इस क़दर
सीने में दर्द आज भी इतना बुलन्द है
किस किस से सीखता है सियासत का वो सबक
कैसा भी कर दे काम नतीजा बुलन्द है
इन्सानियत का मुल्क में नारा बुलन्द हो
समझो के अपने देश का तारा बुलन्द है
पानी हमें ज़रूर है मंज़िल किसी तरह
‘आनन्द’ अज़्म अपना इरादा बुलन्द है
– डॉ आनन्द किशोर