दुनिया में मैं कुछ कर न सका
दुनिया में मैं कुछ कर न सका
जीवन गुत्थी रही जस-की-तस,
हुई न थोड़ी भी टस-से-मस।
जीवन भर कर्म किया अविरल,
मिला न कभी जी को सुख-रस।
मुस्कान अधर पर पड़ न सका,
दुनिया में मैं कुछ कर न सका।
जब बड़े हुए, कुछ ज्ञान हुआ,
जिम्मेदारी का जब भान हुआ।
पकड़ लिया कुछ ऐसा पथ,
सम्पूर्ण भविष्य परेशान हुआ।
सुअवसर कभी पकड़ न सका,
दुनिया में मैं कुछ कर न सका।
दो पैसा जब घर में आया,
दुःख बादल ऐसा मडराया।
लाया घर में ज्योतिपुंज समझ,
चहुँ ओर अँधेरा बनकर छाया।
रवि बन उस तम को हर न सका,
दुनिया में मैं कुछ कर न सका।
कभी समंदर ने पथ को रोका,
अभी पर्वत सम्मुख आ टोका।
आगे बढ़ना तब मुश्किल था,
जब पड़ गया पैरों में फोंका।
हिम्मत बढ़ने का कर न सका,
दुनिया में मैं कुछ कर न सका।
कभी फूल मिला, कभी शूल मिला,
कभी नभ का उड़ता धूल मिला।
संघर्ष के झंझावातों से, मुझको
पीड़ा बहुत अलूल-जलूल मिला।
अपनों को मैं जकड़ न सका,
दुनिया में मैं कुछ कर न सका।