दुनिया बदल सकते थे जो
दुनिया को बदल सकते थे जो
दुनिया ही छोड़कर चले गए
उन्हें बुजदिल कहें या संगदिल
हमको झकझोर कर चले गए…
(१)
उनमें तो इतनी हिम्मत थी
जान की बाजी लगा सकें
बगावत का मशाल उठाकर
ज़ुल्मत में आग लगा सकें
लेकिन अपनी जिम्मेदारी से
अपना मुंह मोड़कर चले गए…
(२)
शायद इस व्यवस्था से
उन्हें कोई शिक़ायत थी
अपनों की हमदर्दी की
उनको थोड़ी ज़रूरत थी
इससे पहले हम कुछ समझें
अचानक दौड़कर चले गए…
(३)
एक बेहतर देश और
एक ख़ुबसूरत समाज का
जिसमें सबको सुविधा हो
शिक्षा, काम और इलाज का
ऐसे जाने कितने सपने
झटके में तोड़कर चले गए…
(४)
उनकी खुदकुशी से हुए
नुक़सान की भरपाई
मिलकर भी न कर पाएगी
अब तो सारी खुदाई
उम्र भर के एक दर्द से क्यों
हमें वो जोड़कर चले गए…
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Shekhar Chandra Mitra
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