“दुनिया तिरे मिज़ाज का बन्दा नहीं हूँ।”
जैसा समझ रही है तू वैसा नहीं हूँ मैं।
दुनिया तिरे मिज़ाज का बन्दा नहीं हूँ मैं।
मुझ को मुहब्बतों की तिजारत पसंद है।
नफ़रत के सौदे बेचने वाला नहीं हूँ मैं।
अपने बङों का करते नहीं हैं जो एहतिराम।
ताज़ीम ऐसे लोगों की करता नहीं हूँ मैं।
हिम्मत के साथ जानिबे-मंज़िल हूँ मैं रवाँ।
दुश्वारियों से राह की हारा नहीं हूँ मैं।
करता हूँ मैं ख़ताएँ तो हैरत की बात क्या।
इंसान हूँ जनाब, फ़रिश्ता नहीं हूँ मैं।
दिल में तुम्हारे प्यार नहीं हैं मिरे लिए।
तुम क्या समझ रहे हो समझता नहीं हूँ मैं।
ग़ैरों की बात छोङिये वो तो ‘क़मर’ हैं ग़ैर।
अपनों की भी निगाह में अपना नहीं हूँ मैं।
जावेद क़मर फ़िरोज़ाबादी।