दुनिया की रीत
आज के इस भुवन की ,
रीत विपुल परिकल्पना है ,
कुकर्मी से संधि कर लो ,
अपना हयात अभेद्य कर लो ,
ऐसी अपूर्व दुनिया की रीत।
भ्रष्टाचारा, दुष्कर्म, हो रहे ,
आत्मसर्मपन के सबब ही ,
मनुजों न्यून निर्भयता दिखाओ ,
अपना और अपने स्वजनों का ,
अभिभावकत्व आप स्वयं कर लो।
दुनिया की रीत भुनाना होगा ,
नव्य हयात उदय करना होगा ,
कुकर्मी को हमें मिटाना होगा ,
भ्रष्टाचारी, दुष्कर्म रोकने की ,
आकट्य प्रतिज्ञा हमें करना होगा।
निर्वाच्य की निरपराध चरितार्थ कर ,
नूतन हयात में समन्वय करना होगा ,
दरिद्रों की यातनाओं मिटाने का ,
निष्कर्ष हमें मिलकर करना होगा ,
ऐसी अक्षति युक्त नूतनलिखित ,
दुनिया की रीत हमें गढ़ना होगा |
नाम – उत्सव कुमार आर्या