दुनिया ए आतिशखाना
गुज़रे में ज़िन्दगी के हमने यही है जाना ,
दुनिया कम नहीं किसी आतिश्खाने से।
शोले इतने कि जिसका कोइ शुमार नहीं,
अरमान जल रहे हैं किस कदर परवाने से।
शमाएँ पुकारती है उधर कर- कर के इशारे ,
उधर साक़ी कि सदायें आएं मयखाने से।
हफ़िज़े में छायी है बेइंतहा कशमकश ,
दिल भी बहलता नहीं लाख बहलाने से ।
नागुज़िर है जग़ज़्ज़ुल के वाज़दां से दामन छुड़ लुं ,
और दूर हो जाऊं इनके लपटों के तहखाने से।
तमन्ना है तलाश -ऐ-रहबर कि औ खुदा की ,
जो दिखा दे मुझे ज्यादा ऐ- तलब के नज़राने से।
दुनिया है वजहे-सद -खराबी आख़िरश यह माना,
फंसाती आई हैअहल -ऐ -हवस को ज़माने से।
लाख काविशें करे यह आतिश्खाने कि चिंगारियाँ ,
होंसले ना मिट सकेँगे इनके लाख मिटाने से।