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8 Jul 2024 · 1 min read

दुनियादारी

ऊब गये हैं हम तो अब , उफ़ ये दुनियादारी।
खाने के लाले पड़े,भंडारे की करू तैयारी।

बुलाओ रिश्तेदारों को,सहो उनके चोंचले
शगुन देकर विदा करो,फालतू ढकोसले।

तब भी रूठे बैठे हैं ,कैसे रिश्ता ये निभाए
लोक लाज ही रख लेते,बैठे मुंह फुलाए

बच्चों का छीन निवाला,निभती समाज की रस्में।
ऊपर से बहन दे जाये,भात भरने की कसमें।

ऐसी दुनिया से तो दूर ही हमरहना चावे
आग लगे इसे ,जो वक्त कर काम न आवे

सुरिंदर कौर

Language: Hindi
41 Views
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