“दुनियादारी”
न चुप्पी ही सही जाती हैं, न बातें ही कही जाती हैं;
दिल से गर जुड़ जाए कोई जुबां से अनबन हो जाती है।
कभी कहलाती मुफट, कभी पत्थर दिल कहलाती है।
सच्चे तलाशने वालों को गर सच्चाई दिखलाती हैं।
कंकर – पत्थर, शूल- काटें मिलकर राह बनाती है।
समझदारी आती बाहें फलाए नादानियों को तले दबाती हैं।
जगह बनाती हैं खुद की और सब कुछ निगल जाती हैं।
मेरे भीतर की नादान लड़की भीतर ही मर जाती हैं।
“ओश” दोगली नहीं हैं ये दुनियां, दोगलेपन को शर्म आती हैं।
हकीकी ज़मीं पे नज़र घुमाओ ये अनगिनत चेहरे दिखाती हैं।l
ओसमणी साहू ‘ओश’ रायपुर (छत्तीसगढ़)