दुनियादारी में
* गीतिका *
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अपने मन की बातें सुनना, क्या है दुनियादारी में।
पूर्ण लिए विश्वास बढ़ेंगे, साथ विरासत प्यारी में।
हर हाल हमें संघर्षों में, मंजिल पाकर ही रहना।
कमी नहीं है कोई भी अब, इच्छा शक्ति हमारी में।
कहीं राह में खो मत जाना, छद्म बहुत है आकर्षण।
कदम कदम पर छल हैं भारी, दुनिया विस्मयकारी में।
कभी सहज विश्वास न करना, जांच परख लेना प्यारे।
दर्शक मूक बने रहते हैं, लोग मुसीबत भारी में।
स्मरण किया करते ईश्वर को, संकट जब आता कोई।
सबको सच्चा साथी मिलता, मानव परोपकारी में।
जब उलझन से भरा हुआ है, जीवन का ताना बाना।
संभल संभल पग धरना है, हमें रात अँधियारी में।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य
मण्डी, हिमाचल प्रदेश