**दुख भरे दिन** — कहानी
****दुख भरे दिन***
अरे बहू रुकमणी,हम बर्बाद हो गए,मेरा बेटा मेरा बेटा____ श्या__म ! हाथ में एक पत्र थामे जगन ने जब रोते हुए स्वर में बहू को आवाज लगाई तो,काम में लगी रुकमणी हक्की बक्की रह गई।
गांव की बहूएं कहा अपने ससुर से बोलती है, सो रुकमणी घूंघट की ओट में मुंह छुपाएं सुनती रही।
अरे मेरे बेटे यह क्या किया तूने,क्यों हमें छोड़कर चला गया।
बार बार ऐसे ही रुदन भरे स्वर में जब जगन आंखो में आसूं भर कर कहे जा रहा था, तो रुकमणी के पास ही बैठे बड़े बेटे
सनी ने पूछ लिया __ क्या हुआ दादा जी,यह कैसा कागज है और मेरे पापा का नाम लेकर आप बार बार यह क्यों कह रहे हो __ बेटा तूने यह अच्छा नहीं किया।
दादा कागज दिखाते हुए कहने लगे _ बेटे इस कागज में तेरे पिता ने लिखा है कि जब तक यह पत्र तुम्हे मिलेगा मै दुनिया छोड़ चुका होऊंगा।
जैसे ही यह शब्द रुकमणी के कानों में पड़े मुंह से चीत्कार निकल गई,सुध बुध खो कर दहाड़े मार कर रोने लगी।
बेटे सनी की आंखे भी भर आईं, दस बारह वर्ष का सनी रोते रोते बोल पड़ा नहीं दादा जी नहीं ऐसा नहीं हो सकता यह झूठा पत्र है मेरे पापा ऐसा नहीं कर सकते।
जगन ने सनी को अपने गले से लगाया और बोले बेटा मैं क्या करूं इसमें जो लिखा है वही तो कह रहा हूं।
उधर मां का रो रो कर बुरा हाल था। जैसे तैसे सनी ने ही हिम्मत बड़ाई और मां को अपने पास बिठाकर कहा मत रो मत रो यह सब झूठी बात है मेरे पापा निश्चित आएंगे यह किसी के द्वारा भेजा गया गलत संदेश है।
धीरे-धीरे वक्त बीतता रहा अपने पति की याद में छोटे-छोटे बच्चों के साथ में रुकमणी जैसे तैसे अपने दिन भी काटती रही। उससे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरे पति ऐसा कर सकते हैं मन में एक भरोसा जगा कर अपने बच्चों को पालती रही।
एक तरफ गरीबी की मार दूसरी तरफ पति के बारे में ऐसी सूचना।रुकमणी बड़ी मुश्किलों से अपने बच्चों को संभालते हुए जीवन जी ही रही थी, कि एक ओर संकट आन पड़ा। उसका छोटा बेटा लच्छू सामान्य सी बीमारी में चल बसा। परिवार की गरीबी ,बेसहारा रुकमणी ऐसी विपरीत परिस्थितियों में अपने बेटे के लिए अंतिम क्रिया का भी सही सही इंतजाम न कर सकी।
सनी ही गांव से इधर उधर से जो भी खाने पीने को मिलता उसी से घर गुजर चलता था। दादा दादी चाचा चाची सभी ने भी रुकमणी से न जाने क्यों रिश्ता तोड़ लिया था। बड़ी मुश्किलों से जीवन का गुजर बसर हो रहा था।
इसे ईश्वर का चमत्कार करें या रुक्मणी का भाग्य !
एक दिन सुबह सुबह जब सनी गांव में इधर उधर गया था और मां घर पर ही कुछ कार्यों में व्यस्त थी कि अचानक रुक्मणी का सुहाग श्याम उसके सामने खड़ा था।
रुकमणी को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था वह दौड़ करके अपने पति श्याम से लिपट गई।
स्वामी ,मेरे स्वामी कहां चले गए थे । क्यों इतना कष्ट दिया?
क्यों ऐसी खबर क्यों भेजी।
नहीं-नहीं रुकमणी – मैंने कोई पत्र नहीं भेजा लगता है इसमें अपनों की ही चाल है। अब तक सनी भी घर आ चुका था ।
जैसे ही देखा पापा मां से बाते कर रहे है,दौड़कर वह भी अपने पापा से लिपट लिपट कर रोने लगा।
दादा दादी चाचा चाची को खबर लगी कि_ श्याम आ गया है तो वह उससे मिले भी नहीं उपर से घर छोड़कर कहीं चले गए।
श्याम को बहुत क्रोध आया ।
परंतु रुक्मणी ने समझाते हुए कहा _यह मेरे नसीब के कष्ट थे ।आप किसी को दोष मत लगाइए।
श्याम कहने लगा – तुम्हारी बात मानता हूं ,चलो तैयार हो जाओ सभी। हमें अब यहां नहीं रहना और ऐसा कहके श्याम अपने परिवार को लेकर घर से निकल आया। जन्मभूमि छोड़कर उसने अपना नया ही कर्म क्षेत्र बनाया ।आज श्याम का पूरा परिवार सुख से जीवन बिता रहा है। जीवन में आए हुए उस मोड़ को भूल कर के प्रगति उन्नति के साथ सुखमय जीवन बीता रहा है ।
**कहानी कुछ कुछ आप बीती है**
राजेश व्यास अनुनय