दुखी हूँ मन से फिर भी मिल रहा हूँ !
दुखी हूँ मन से फिर भी मिल रहा हूँ !
मै दिया हूँ इसलिये ही ज़ल रहा हूँ !!
कभी मिल ही जायेगी मंजिल मुझे !
आज तक इसीलिये ही चल रहा हूँ !!
तोड़ लेगा वो मुझे ये जानकर भी !
क्या बताऊँ मै फिर भी खिल रहा हूँ !!
क्या सिखायेंगें पाव के छाले मुझे !
जब आज तक तो मै पैदल रहा हूँ !!
चेहरे से अौकाद मेरी ना आंकों !
किसीके जेहनका मैभी संदल रहा हूँ !!
भगवान के जैसे पूजा है मुझे भी !
किसी के घर का मै भी पीपल रहा हूँ !!
मुझे ना कहो लाचार मेरी सुनो !
“कृष्णा”मुद्धतों मैं भी बादल रहा हूँ !!
-:कवि गोपाल पाठक :-(कृष्णा)