“दुखती रग..” हास्य रचना
बइठि जु “आशा”,लिखन कौ,कूदि घरैतिन आय,
काली-पीली ह्वै रही, आँखि रही गुन्नाय।
कान खोलि कै अब सुनौ, मोय न कविता भाय,
चना-चबेना, धरि गई, ठँडी चाय पिलाय।
कवन घड़ी जानै रही, सौतन यह लै आय,
राशन-पानी को कहै, पोछा दियो भुलाय।
थर-थर काँपति लेखनी, स्याही तक बिखराय,
भूलि गये का लिखन कौ, पन्ना गये उड़ाय।
जैसे-तैसे जो लिख्यो, सो ही रहे सुनाय,
क्षमा बड़ेन कौ चाहिए, बात काहि बिसराय..!