” कमान “
महिमा की शादी हुये एक महीना ही हुआ था सयुंक्त परिवार लेकिन ” कमान ” एक के हाथ में और वो थीं दादी सास…सही – गलत कुछ भी उनकी निगाहों से बच नही सकता था । सयुंक्त परिवार शहर का सबसे बड़ा डिपार्टमेंटल स्टोर…किसी बात की कोई कमी नही लक्ष्मी जी का वरद हस्त जो सर पर था , एक दिन दोपहर के खाने के बाद सब खाना खा कर उठ गये महिमा और चाची सास खाना बर्तन समेटने लगीं तभी अचानक से चाची सास बोलीं की तुम्हें पता है दुकान से हर महीने सबके नाम का चैक आता है लेकिन मिलता किसी को नही है…महिमा ने सुना और जाकर दादी सास को फ़र्ज़ समझ कर बोल आई ( सबका भला करने की सोच कर ) की क्या दुकान से हर महीने सबके नाम चैक आता है दादी ? दादी सास ने उसकी तरफ देखा और पूछा की तुमसे किसने कहा ? महिमा सोचा इसमें छुपाने जैसा क्या है छट से बता दिया की चाची जी कह रहीं थीं , सबके चैक सबको क्यों नहीं मिलते हैं ?
अभी वाक्य पूरा ही हुआ था की दादी सास ने तुरन्त आवाज़ लगायी ” छोटी बहु ज़रा यहाँ आना तो ” चाची सास तुरन्त हाज़िर , दादी सास उनसे बोलीं की देखो नयी बहू तुम लोगों की तरफ से बोलने आ गई दुकान के चैक के बारे में…तुम सबको हाथ खर्च मिलता है की नही ? कपड़े – लत्ते – गहने तीज – त्योहारों पर मिलते हैं की नही ? वो सब कहाँ से आते हैं छोटी बहू ? इतना सुनना था की चाची जी ने तुरन्त मना कर दिया ” मैने तो ये नही कहा ” महिमा को तो काँटों खून नही उसने प्रश्न वाचक नज़रों से चाची जी को देखा वो एकदम निर्विकार भाव के साथ खड़ी थीं ।
दादी सास ने उनको जाने के लिए कहा उनके जाते ही उन्होंने महिमा से कहा तो कुछ नही बस हाथ से इशारा किया की मै सब समझती हूँ और मुस्करा दीं….इधर इशारा करते हुये दादी सास मन ही मन सोच रहीं थी की कल की आई बहू को दुकान के चैक की बात कैसे पता चली ? ” इधर महिमा वापस अपने कमरे में जाते हुये चाची जी के तपाक से बोले हुये झूठ और उनकी तरफ़ से आने वाले तूफान के बारे में सोच रही थी लेकिन उसको इस बात की तसल्ली भी हो चली थी की घर की ” कमान ” सही हाथों में है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 27/09/2019 )