दुआ को असर चाहिए।
चेहरा पढ़ने को नज़र चाहिए।
यहां ज़िन्दगी जीने को हुनर चाहिए।।1।।
करने को तो सब ही करते है।
पर मुकम्मले दुआ को असर चाहिए।।2।।
बड़ी खामोश है ये ऊंची इमारतें।
बस्ती में रहने को कुछ बशर चाहिए।।3।।
खत्म तो हो जाए अंधेरा शब का।
आफताब के आने को सहर चाहिए।।4।।
मंजिल तो मिलेगी मुसाफिरों को।
पर चलने के वास्ते तो डगर चाहिए।।5।।
बड़े गम सहे है उसने ज़िन्दगी में।
यूं सभी से लड़ने को ज़िगर चाहिए।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ