*दुआओं का असर*
।। दुआओं का असर ।।
***ॐ श्री परमात्मने नमः ***
ऐसा कहा जाता है कि – माँ सरस्वती कण्ठ में हमेशा विराजमान रहती है और हम जो भी शब्द बोलते हैं कभी -कभी वह जुबान से निकलते ही तुरन्त असर कर देती है चाहे वह अच्छी दुआयें हो ,या बुरी दुआयें हो ।
जब हम खुश रहते हैं तो हॄदय से सच्ची दुआएँ निकलती है और कभी मन किसी कारण से उदास होता है तो खिन्न मन से बुरी वक्त में बुरी बातों का ही ध्यान आकर बददुआ ही निकल जाता है।
ऐसे ही रामनरेश दुबे जी अपने पैतृक गांव शिवपुर घूमने के लिए गये लेकिन वहाँ जाकर देखा तो वहां आसपास इलाकों में ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण से ज्यादा आने जाने की सुविधा उपलब्ध नहीं थी ।
मात्र एक बस सुबह चलती और वही बस शाम को वापस लौट कर चली जाती थी बाकी कुछ लोग पैदल ही यात्रा करते थे।
रामनरेश जी अपने पैतृक गांव में घूमकर सभी परिवार जनों से मुलाकात करते हुए शाम को गांव से वापस लौट रहे थे तो वहां से बस स्टैंड की दूरी 3 किलोमीटर थी ।
बस स्टैंड पहुँचते ही बस आई लेकिन बस में सवारी खचाखच भरी हुई थी ।
रामनरेश जी ने हाथ दिखाकर बस रोकने की कोशिश की लेकिन बस ड्राइवर ने बस तेजी से आगे बढ़ा दी और चले दी
अब रामनरेश जी बड़े असमंजस में पड़ गये कि क्या करे …..? ? ?
कल ऑफिस में जरूरी काम है समय से घर पहुंचना है और अगर वापस लौट कर गांव शिवपुर जाता हूँ तो 3 किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा फिर कल सुबह ऑफिस पहुंचना ही है
दूसरा विकल्प यह है कि आगे 10 किलोमीटर पैदल चलने पर साधन उपलब्ध हो सकता है तो रामनरेश जी ने दूसरा विकल्प चुन लिया और पैदल चलने की ही बात मान लिया
अब मन में सोचते हुए जा रहा है कि वैसे भी बस खचाखच भरी हुई थी लेकिन बस ड्राइवर जरा देर रोककर मुझ एक व्यक्ति को बैठा लेता तो क्या हो जाता …….
ठीक है कोई बात नहीं मन में कहने लगा – *जा रे बस वाले मैं पैदल ही चलकर तुझे हरा दूँगा और मुझे बस में बैठाकर तूने अच्छा नही किया आज तेरी बस आगे जाकर फेल हो जाय याने किसी कारण से रुक जाये *
ऐसा सोचते हुए आगे बढ़ते ही जा रहा था और हनुमान जी का नाम लेते हुए भी चले जा रहा था जैसे – तैसे वह 10 किलोमीटर की दुरी तय हुई और अगला पड़ाव आया फिर घर पहुंचने का साधन उपलब्ध हो गया और चलते हुए रास्ते में देखता है कि वही बस जिसने रामनरेश जी को छोड़ कर तेज रफ्तार से आगे निकल गया था वही बस का टायर पंचर हो गया था और बीच रास्ते पर गाड़ी खड़ी हुई थी
और सारे यात्री परेशान हो रहे थे ।
और मैं इतनी मशक्कत कर पैदल यात्रा करके बड़े आराम से अब घर जा रहा हूँ।
तभी मन से आवाज आई क़ि सच्चे अर्थों में दिल से निकली हुई आवाज कितने जल्दी सच हो जाती है चाहे वो अच्छी दुआ हो या बुरी बददुआ हो ।
*सच्ची दुआओं का असर ज़ुबान पर लाकर देखिये
मन मंदिर में सच्ची दुआयें जगा कर तो देखिये
रूठने से क्या हालात होती है जरा मेरी हालातों पर ग़ौर कीजिये
उदास खिन्न मन की हालातों को बयां शिरकत कीजिये
मगर उन दुआओं का असर बेपनाह बेअसर कीजिये
शशिकला व्यास✍️
भोपाल मध्यप्रदेश