दुःख के आलम में रातें लंबी लगने लगती हैं,उन रातों में ख्वाब
दुःख के आलम में रातें लंबी लगने लगती हैं,उन रातों में ख्वाब भी झुंड बनाकर आते हैं।वो ख्वाब, जो काली रातों की धुंध में खो जाते हैं,और जब दिखते हैं, तो बस खाली खाली होते हैं।।
ग़म से दर्द का रिश्ता गहरा हो जाता है,रातें और लंबी, और तन्हाई बढ़ती जाती है।जब कभी ख्वाब में तुम्हें देखने की चाह होती है,सिरहाने तुम्हारा ख्याल आकर ठहरता है।तुम्हें अपना बनाने की ख्वाहिश दिल में बस जाती है,पर उस ख्वाहिश का बोझ और रात बढ़ा जाता है।यूँ हर ख्वाब में, हर आहट में, बस तुम ही होते हो,
पर हासिल में, वही वीरान रातें बचती हैं।।
दर्द की इन स्याह रातों में हर ख्याल तुमसे जुड़ जाता है,जैसे तन्हाई का हर कोना तुम्हारा अक्स दिखाता है।
ख्वाबों की बस्तियों में तेरी सूरत बसी रहती है,पर हकीकत की जमीं हर बार खाली दिखती है।।
चाँद भी बादलों की ओट में छुपा सा लगता है,तारों का उजाला भी अब अधूरा सा लगता है।तेरे बिना ये रातें बेवजह लंबी हो जाती हैं,और हर लम्हा बस एक सिसकी में ढल जाता है।दिल कहता है कि ख्वाहिशों को अब थाम लूँ,पर आँखें तेरी राह में फिर भी जागती रह जाती हैं।।
बस ग़म की परछाइयों में और गहरी होती जाती हैं।
ग़म की राते…!