स्थापित भय अभिशाप
शीर्षक – स्थापित भय अभिशाप
दुःखी होता मन
कभी-कभी!
लोग क्यों करते है?
स्थापना भय की।
निःशब्द,मूक होना पड़ता
जब समझाना हो अपनों को
हार जाना,मूक पीड़ा चोट
कितना खतरनाक है
तिलिस्म का टूटना।
परम्परित भय व्यक्ति नाशक
स्वच्छ समाज ….!
जब दुनिया पोषक मानती
और करती अनुकरण
पीड़ा तब अधिक बढ़ती
जब अपने ही करते
अवमानना विरोध उपहास।
मरने पर ही पूजा करता संसार
जीते जी तिरस्कार
दे दिया जाता विष,गोली,शूली
भय अमरता नहीं!
भय उत्पादक भी है,
विनाशक भी है।
परन्तु! स्थापित भय
जीवन पर अभिशाप।
अनिष्टाशंका भय बीज
संकोच-संकीर्णता के दायरे
भय के राजमार्ग।
भय उत्पादक भविष्य बाधक
भय व्यापार प्रतीक
शिक्षा पीछे अंधविश्वास से
बुद्धि पर घेरा भय का।
भयभीत व्यक्ति कायर है
न कि वो शायर है।
शत्रु पर भय हितकारी
शत्रु भय विनाशी
संशय के कण चुनकर
सत्य कब जाना?
उत्साह आत्मबलास्त्र
सुखद अनुभूति जीवन शास्त्र
कल्पनाशक्ति ब्रहास्त्र
खोज लेती है राह
डगर नियंता बन जाती है
डगमग मग में अटल करती
जीवन के वरदान बन
अभिप्रेरित क्षण में
विराट पथ दृष्टा बनती।
सबकुछ करने का विश्वास
जीवन ज्योत जलाती
मरने को आतुर मन भी
प्रफुल्लित हो जाता।
महानता उत्साह की उपज।