दीवार –
दीवार:
पिछले अहाते की दीवार पर
जाने कितने रंग उंडेल दिए
गहरे गुलाबी बोगेन वेलिया
बन गए हैं.
हल्के नैगनी जैकरंडा
बेतहाशा फैल गये हैं
कुछ . ट्यूलिप लाल रंग
पता नही कब ,
निकल आये हैं.
साथ ही हरे हरे
कैक्टस बाढ़ की तरह
निकल आए हैं
फिर भी
हसरत यही है.
ठीक बीच में
गोल सूरज
सब तरफ आलोक
फैलाता हुआ
फैल रहा है
मै क्या करूं
कितने भी मोहक
मनोरम रंग बिखरे हों
जीवन की दीवार पर
दिव्य आलोक
भव्य तेज
मुझे एक नई शक्ति
एक नई ऊर्जा
मे भीतर में
भर रही है।
डॉ करुणा भल्ला