“दीवारों के कान “
करते हो निंदा अगर,रहे हमेशा ध्यान !
होते हैं तुम मान लो,.दीवारों के कान !!
नही समझना भूलकर,कभी इन्हें बेजान !
होते हैं सचमुच बडें, ….दीवारों के कान !!
सोलह आने सत्य है,बात समझ नादान !
रहते हैं ओझल सदा,…दीवारों के कान !!
मुझको यही मुहावरा ,कर देता हैरान !
सुन लेते हैं बात सब, दीवारों के कान ! !
रमेश शर्मा.