दीवाना हूं प्रेम गीत गाता हूं
मन के भावों को ,शब्दों में पिरोता हूं
कवि हूं ,गागर में सागर डुबोता हूं
उड़ता हूं ,कल्पना के अंबर में ऊंचा
परिंदा हूं ,पंखों के हौसले आजमाता हूं
इश्क है शमा से, इस तरह बेपनाह
पतंगा हूं ,फानूस से बार बार टकराता हूं
ये चमन ये बहार , इस कदर लुभाते है
भौरा हूं ,कली-कली पे मंडराता हूं
मचल उठता है, दिल मेरा रह रहकर
दीवाना हूं, बरबस प्रेम गीत गाता हूं
©ठाकुर प्रतापसिंह “राणाजी”