दीवानगी
इस कदर किसी को कोई न चाहे के
दुनिया भूल जाए ,
भटकते रहे अनजान राहों में खुद से भी
परे हो जाए ,
जिनकी चाहत में हम दुनिया को भूल गए ,
वो हमसे दूर अपने रकीब के करीब हो गए ,
टूटे दिल की दास्ताँ हम किस कदर सुनाएं ,
जो दिल में पैवस्त है उन्हे किस कदर भुलाएं ,
किसी चारागर की तलाश में भटकता फिर रहा हूं ,
दिल के जख़्मों का मुदावा ढूंढता फिर रहा हूं ,
हर सम्त तीरगी का एहसास ज़ेहन पर तारी है ,
एहसास -ए -ग़म इस ज़िंदगी पर भारी है ।