दीयों में जल रहा बचपन
“साहब साहब 10 के छः हैं ले लीजिये न
एक दम पक्के हैं देखो तो सही
ये देखो इस दीये पर रंगो से डिज़ाइन भी बना है…
अच्छा ठीक है आपके लिए 10 के 7 लगा दूंगा”
कमर में दियों से भरी टोकरी अटकाए
(बिलकुल वैसे जैसे किसी माँ ने बच्चे को कमर पे उठा रखा हो)
एक पुरानी पर साफ़ सुथरी सी कमीज में खुद को समेटे हुए(शायद किसी ने दीवाली की सफाई में निकाल दिलदार हो कर दी थी)10-12 साल का वो बच्चा न न बच्चा कहां था वो टोकरी में ज़िम्मेदारी का बोझ लिए घूम राह था वो तो….उस आदमी के पीछे पीछे बहुत दूर तक आ गया….
वो मनुहार करता नहीं थक रहा था और साहब जी मना करते करते(क्यों न करते बाजार से नयी डिज़ाइन वाली लाइट,मोमबत्ती जो लाये थे)
“अरे नहीं लेना न” समझ नहीं आता????
“साहब दीयों बिना कैसी दीवाली ले लीजिये न…
आपके लिए और कम लगा दूंगा…
ले लीजिये न…..”
आखिर साहब के मन का राम जागा
“चल दे दे 20 के लेकिन बाती के लिए रूई साथ देना… बच्चे की आँखों में चाइनीज लड़ियों के लट्टू जगमगा गए….
और फटाफट 20 के दीये और थोड़ी बत्ती थैली में डाल दिए “साहब 20 के और दे दूँ??
5 दीये ज्यादा दे दूंगा घर की रंगोली पे भी लगाना और दीवार पर पास पास रखोगे न तो देखना घर दूर से ही झिलमिला उठेगा…”
“ले रख तेरे ये दीये भी” और दीये लेने की कहते ही अब साहब के अंदर का “रावण” जाग गया….और जोर से उसकी टोकरी में पटक दी थैली..
कुछ दियो के साथ उसका दिल भी चटक गया..”
गर्म अंगारे सी आंखें निकाले फिर झल्लाया “कितने भी दीये लगाऊ तुझे क्या फर्क पड़ता है??? बेवजह दिमाग ख़राब कर दिया…चल निकल यहाँ ये और आगे बढ़ने को हुआ की…..
दीये सी झिलमिलाती आँखों को पानी से भर कर बस इतना ही बोला “साहब आपके घर में कुछ दीये और जल जाते तो शाम को मेरे घर भी दीवाली मन जाती” और शर्ट के कोने से आँखें पोंछ मुड़ गया….
“मैडम जी दीये ले लो बाती की रूई फ्री दूंगा”
“इंदु रिंकी वर्मा” ©