दीप
स्वरचित
आ दीप जला तू खुशियो का ………
आ दीप जला तू खुशियों का मिटा हर दुख का अंधियारा
कुछ तो कर सर्व हित में के य़ाद करें तुझे जग सारा
नव आशाओं का दीप तू बन,
मोती भी बन और सीप तू बन
ना -उम्मीदों की उम्मीद तू बन,
सरहद पर बढती रंजिश में ,जोडे दिल जो वो प्रीत तू बन
जो सुख दे सबके मन को, हाँ ऐसा सा संगीत तू बन
तु सुर भी बन और तान भी बन
अर्मान भी बन,पहचान भी मन
तु देश का गौरव- अभिमान भी बन
सुन ! तन से तो तू एक मानव है
पर कर्मों से भी इंसान तू बन
अा दीप जला तू खुशियों का,बदलाव की नव पहचान तू बन
तम दूर भगा,गम दूर भगा नित प्रेम का तू दीप जगा
जीवन पथ पर जो हार गए उनमें जाकर कुछ ज्ञान जगा
तु दीप बनकर तिमिर हटा,
सूरज वाला प्रकाश तू बन
बुझे मन का विश्वास तू बन,
सब लें पायें उडान अपनी
प्रेरित कर,उनका आकाश तू बन
**नीलम शर्मा **