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3 Mar 2019 · 1 min read

“दीप/दीपक”

बुराई का अंधेरा डसता रहा,
दीप अच्छाई बन चमकता रहा,
कर्म का तेल, एकता की बाती,
रोशन जहाँ को करता रहा l

स्वयं में साहस भरता रहा,
संघर्ष के रास्ते हँसता रहा,
दृढ़ इरादों की ज्वाला बनकर,
विपरीत हवाओं से लड़ता रहा l

थपेड़े वक़्त के सहता रहा,
कफ़न बाँध के चलता रहा,
फ़र्ज़ निभा अंतिम साँस तक,
जीवन को प्रेरणा देता रहाl

धैर्य की लौ बन मुस्काता रहा
मन की ऊर्जा बाँटता ही रहा
कर्तव्य से बढ़कर सुख कहाँ?
जलता दीपक ये कहता रहा l

Language: Hindi
1 Like · 303 Views
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