दीप उल्फ़त के
नफ़रतों को न तुम हवा देना।
दीप उल्फ़त के मत बुझा देना।
आदमी की इस आदमीयत को,
इस जहां से न तुम मिटा देना।
अम्न से ज़िन्दगी ये जीने दो,
आग पानी में मत लगा देना।
ज़िन्दगी ‘रब’ ने तुमको बख़्शी है,
नेक किरदार से सजा देना ।
कोशिशें मत करो हराने की,
हमको आसां नहीं हरा देना।
डॉ० फ़ौज़िया नसीम ‘शाद’