दीपावली
सुनो जी, दिवाली आ रही है। सभी बच्चे घर आएंगे। साल भर का त्योहार है, पूरा घर अस्त-व्यस्त पडा है, साफ सफाई अच्छे से करनी है, कोई कोर कसर न रह जाए। बेटी हो या बहू सभी को अच्छा लगे ऐसी सफाई करके घर व्यवस्थित करना है। जानते ही हो बच्चे, मेरे लिए सब कुछ हैं।
जानती हूं, तुम्हारा घर के काम मे मन नहीं लगता। एक सुई भी उठा के रख नहीं सकते। लेकिन इसमे आपको भी साथ लगना पडेगा। उम्र हो गयी है अब उतना नहीं होता। बस जो कहूं कर देना, मेरी मदद हो जाएगी और सब कुछ ठीक-ठाक हो जाएगा। ‘मालकिन वाली फीलिंग ने मन को प्रफुल्लित कर दिया।’
लेकिन मेरी सुनते ही कहां हो, सब अपनी मर्ज़ी का करते हो। कहने को मालकिन हूं, पर हूं क्या ? मै ही जानती हूं ? ये घर बनवाया है ? चारो तरफ खुला खुला, हर तरफ रोशनदान, बडी बडी खिड़कियां आंगन । धूल मिट्टी हवा आती रहती है। सफाई का ध्यान तो मुझे ही रखना पडता है। हर रोज सुबह से लेकर रात तक खटती रहती हूं, तुम्हारे लिए, तुम्हारे बच्चों के लिए और इस घर के लिए। माना कि बच्चे बडे हो गये, अपने पैरों पर खडे हो के अपनी-अपनी घर गृहस्थी में रम गए पर आज भी सब कुछ परोक्ष रूप से उनके लिए ही होता है। आखिर मां हूं मेरी जान तो उन्ही मे बसती है।
दिवाली के लिए नये परदे, सोफा कवर, डायनिग टेबल कवर ये सब ले आईयेगा। पूजा का सामान, पटाखे तो एक दिन पहले ही आएंगे। सबके लिए तो हो नही पाएगा पर नाती पोतों के लिए कपडे तो ले ही लेना। और जो मन मे हो या जो भूल रही हूं याद करके ले लेना भूलना नहीं। ‘दरअसल बहुत दिन हो गये नई साडी नही पहनी, जी चाहता है दिवाली पर पहनूँ सो इशारा कर दिया। उम्मीद है ले आएंगे बहुत चाहते है मुझे, अच्छी तरह जानती हूं।’
दीपावली के त्योहार का शुभारंभ लंका विजय के बाद श्री राम जी के अयोध्या आगमन पर दीप जला कर हर्षोल्लास के साथ खुशी मनाये जाने से हुई। ‘मेरे मन को लगता है मेरा घर भी अयोध्या जैसा ही है, बच्चे आ रहे है हर्ष और उल्लास का माहौल होना ही है। इन्होने पूरी हेल्प की, साडी भी ले आए मन ही मन खुशी से फूल के गुब्बारा हुई जा रही हूं।’
ग्राउंड और फर्स्ट फ्लोर तो गया, बस अब छत ही रह गई है। आज छुट्टी है दोनो लोग लगते हैं जल्दी हो जाएगा। अरे सुन भी रहे हो या मै ऐसे ही बडबडा रही हूं। दिन निकलने को है मै उपर चल रही हूं तब तक सफाई करती हूं, आओगे तो धुलाई भी कर लूगी। ‘बच्चों को दिवाली के त्योहार पर पटाखे छुडाने मे बहुत खुशी मिलती है, छत पर आएंगे ही साफ सुथरी छत देख के खुशी बढ जायेगी मेरा भी मन मयूर नाचेगा’, मैने सोचा।
आगये, – देखो सफाई तो हो गयी पर उतनी दिख नही रही, चलो धुलाई भी कर लेती हूं। ऐसे क्या देख रहे हो ? – जानती हूं घुटने मे तकलीफ रहती है, ठीक से चल फिर नही पाती और छत की धुलाई की बात कर रही हूं यही कहना चाहते हो ना। आप हो ना मेरी मदद को, स्टूल दे दो कुछ बाल्टी पानी दे देना, बैठे बैठे कर दूंगी। -अरे इस तरह सर हिला के मना मत करो, मुझे करने दो। पानी नही देना चाहते तो मत दो, मै खुद ही ले लूंगी।
स्वरचित मौलिक
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अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297