दीपावली पर बेबहर गज़ल
दीपों की रौशनी में उम्मीद जल उठी,
अंधेरों की हर गली में शमा ( दीप )जल उठी।
खुशियों के रंग भर दें हर एक मोड़ पर,
दीपावली की लौ से दुनिया बदल उठी।
आँगन में दीपकों का झिलमिलाता साज,
जगमग के साथ दिल की चाह पिघल उठी।
रूठी हुई ख़ुशियों को वापस बुला लिया,
हर दर्द की लौ भी आज मचल उठी।
माँ लक्ष्मी के कदमों की आहट है पास,
दीपावली में फिर से क़िस्मत सँभल उठी।
घर-घर में दीपकों की बारात आ गई,
सपनों की झील फिर फूल सी खिल उठी।
हर इक दीवार पर हैं खुशबू की पंखुड़ियाँ,
दीपों की रौशनी से चाहत मचल उठी।
हर सूनी राह ने भी पहना है आज नूर,
तन्हाइयों की शाम अब बहल उठी।
दुआओं से बसी हुई ये रंगीन रोशनी,
हर ओर जैसे कोई याद बदल उठी।
फिर से मुहब्बतों का मौसम हुआ जवाँ,
उम्मीद की हर शाख हौले से खिल उठी।
जश्नों का साथ देके आए हैं ये चिराग,
दीपावली की लौ में दुनिया सँभल उठी।
चमके हैं आसमाँ में अरमान के दीये,
हर सिम्त प्यार की उम्मीद पिघल उठी।
हर दिल में झिलमिलाए ख़ुशियों के दिये,
दीपावली में जैसे रुत बदल उठी।
आशीष की घटाएँ बरसी हैं रात भर,
सपनों की वादियों में खुशबू मचल उठी।
चमकेगी फिर से जीवन की ये बंद गली,
हर दीप में नई इक रहमत बहल उठी।
माँ लक्ष्मी के चरणों से सजे हर आँगन,
दीपावली की खुशी फिर से दहल उठी।
कलम घिसाई