दीपावली :दोहे
¥ दीपावली ¥
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घोर अमावस तमस में, मने दिवाली पर्व ।
आसमान से उतर कर, तारे आये सर्व ।।1।।
दीपावली की रात में, हुआ तम है निढाल ।
छोटे छोटे दीवाले ,जल जल करे धमाल ।। 2।।
दीपों के त्योहार में,सजी दीपिका माल ।
घर घर तम का है हरण,जन जन मन खुशहाल।।3।।
दीपमालिका सज रही, जगमग जगमग दीप ।
रात अमावस बन रही, रवि-किरण सी प्रतीप ।। 4।।
दीप बखरे चांदना, तम की छाती चीर ।
स्वर्ण उजाला हर रहा, देखो सबकी पीर ।। 5।।
समुद्र मंथन के लिए, लक्ष्मी का अवतार ।
धन समृद्धि के लिए, दीवाली त्योहार ।। 6 ।।
चौदह वर्ष वनवास से,राम आये निज धाम ।
उसी खुशी में जल रहे, दीप नगर अरु ग्राम ।। 7।।
लौटे पांडव राज्य में,पूरा कर वनवास ।
खुश हो जनता ले रही, दीप जला कर साँस ।। 8।।
नरकासुर आतंक से, हुई नारियाँ मुक्त ।
कृष्ण वीरता के लिए, दीप अमावस युक्त ।। 9 ।।
आनंद शुभता वास्ते, दीप जलाते लोग ।
रोग शोक का हरण कर, मुक्ति दिलावे भोग ।। 10
रविकिरण जहाँ न रहे,वहाँ दीप भगवान ।
अद्भुत शक्ति के लिए, करो दीप दान ।। 11।।
भौतिक सुख सम्पन्नता, समृद्धि स्मृति ज्ञान ।
इनको पाने के लिए, करो दीप का दान ।। 12।।
रचना प्रतिभा कला को, करो समर्पित दीप ।
पाना इनको चाहो तो, रहो निकट संदीप ।। 13।।
विजया लक्ष्मी के लिए, एक जलाओ दीप ।
सदा सफलता पाइये, द्वारे जले प्रदीप ।। 14।।
प्रतिनिधि सूरज के बने , घर घर जलते दीप ।
जहाँ जले रोशन करे रहे तमस न समीप ।। 15।।
सुतल राज्य बली को मिला,,उत्सव हुआ सम्राट ।
दीप जला खुशियाँ खिली,वामन कृपा विराट ।। 16।।
महावीर भगवान ने, पाया था निर्वाण ।।
भौतिकता को त्याग कर,दैविकता निर्माण ।। 17।।
दीपावली एक परम्परा,पाँच पर्व एक साथ ।
पंच पर्व की श्रृंखला , सभी नवाये माथ ।। 18।।
जाति और समुदाय से,ऊपर का ये पर्व ।
कहीं किसी की विजय तो, कहीं चूर है गर्व ।।19।।
प्रकट हुआ था इसी दिन, नारसिंही अवतार ।
वध करके ध्रुव के पिता ,सफल हुए भरतार ।। 20।
प्रेम प्रकाश का पर्व है,दीपावाली विशेष ।
घर घर दीपक दान दे,हरे पाप निज शेष ।। 21।।
सुशीला जोशी, विद्योत्तमा
मुजफ्फरनगर उप्र