दीपक
मिटाके तम को प्रकाश करके,
रोशन सबको करता हूं।
यद्यपि स्वयं तो जलता रहता,
पर तम को सबके हरता हूं।।
अनल को शीश में धारण करके,
पर उपकार मैं करता हूं
तम के कारण भटके जन को,
मार्ग नया दिखलाता हूं।।
ईश्वर की पूजा में जलकर,
गर्व न मैं कभी करता हूं।
शव के पास में जलने से भी,
कभी नहीं मैं डरता हूं।।
उपकारी बनजा तू मानव,
सीख तूझे मैं देता हूं।
क्योंकि मैं तो स्वयं में जलकर,
सबको उज्जवल करता हूं।।
दुर्गेश भट्ट