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8 Jul 2021 · 1 min read

दीपक बन जलता रहा

दीपक बन जलता रहा (गजल)
***** 222 222 221 2 *****
**************************

तन भीगा भीगा मन सूखा रहा,
सावन में भी साजन रूठा रहा।

जहरी बन कर विष को पीता रहा,
कड़वे विष का भी रस मीठा रहा।

मय को पीकर मैं मयकश भी बना,
महफ़िल में दिलजानी रूखा रहा।

बारिश बूंदें गीला कर ना सकी,
बरसाती मौसम में प्यासा रहा।

मनसीरत मन ही मन चाहे तुझे,
नफरत में दीपक बन जलता रहा।
**************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

1 Like · 191 Views
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