दीनता की कहानी कहूँ और क्या….!!
दीनता की कहानी कहूँ और क्या….!!
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तृप्त होती नहीं है क्षुधा की अगन,
सच्चिदानंद भी तो बुलाते नहीं।
दीनता की कहानी कहूँ और क्या,
अश्रु सूखे नयन के रूलाते नहीं।।
नित्य खण्डित हृदय के शिलालेख पर,
भावनाओं की मूरत गढ़े जा रहे।
भाग्य की ठोकरों से अहर्निश विकल,
सद्य बोझिल हृदय से बढ़े जा रहे।
वेदनाएं बनी प्रेयसी दीन की,
हर्ष के गीत हम गुनगुनाते नहीं।
दीनता की कहानी कहूँ और क्या,
अश्रु सूखे नयन के रूलाते नहीं।।
मृत्यु की देहरी पर खड़े हैं शिथिल,
आकलन भाग्य का क्या करें आज हम।
यंत्रणा की पिछौरी में लिपटे हुए,
संकलन भाग्य का क्या करें आज हम।
दु:ख दारुण लिए वक्ष में चल रहे,
पर व्यथा की कहानी सुनाते नहीं।
दीनता की कहानी कहूँ और क्या,
अश्रु सूखे नयन के रूलाते नहीं।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’