दीदी
छोड़ दिया लड़ना,
मुॅह बिराना भी छोड़ दिया,
भूल गयी कुलाचे मारना,
मेरे घर की बछिया।
छोड़ दिया बोलना जोर से,
जोर से रोना भी छोड़ दिया,
रोती तो अब भी है वो
लेकिन सबसे छुपकर।
छोड़ दिया उसने बहुत कुछ
जो वह छोड़ नहीं सकती थी।
दूध पी लेती वह, नाक दबाकर
बिना उल्टी किये।
पकवान भी बनाती वहीं,
फिर भी सोती भूखे पेट वह,
क्योंकि आज भी उसे,
पसन्द नहीे खीर-पूड़ी।
दर्द करता पेट कभी, भूख से
अब खा लेती दवाइयॉ भी,
बिना किसी विरोध के।
मम्मी पहले भी कुछ नहीे कहती थी,
वो आज भी चुप हैं।
पापा तो आज बहुत खुश हैं,
दीदी मेरी बदल जो गयी है।
और मेरी प्यारी दीदी,
पहले हमेशा खुश रहती थी,
अब केवल खुश लगती हैं।