दीदी तुमसा कोई नही है
इंद्रधनुष सा पल्लू रखकर , आज सजी है राजकुमारी !
बाहर बाहर हँसती जितना , मन अंदर से उतना भारी !!
पापा मम्मी के कन्धों में , रखकर सर ऊर्जा भर डाली !
नए घर जाकर दुनिया का , सारा सुख बरसाने वाली !!
सबकी खुशियों के ख़ातिर ही , खुद में इतना खोई नही है !
दीदी तुमसा कोई नही है !!
चेहरे पे मुस्काहत ताने , अपना दर्द छुपाना जाने !
जैसे अम्बर थामे तारा , वैसे हरदम दिया सहारा !!
लड़ती मुझसे मुझे चिढ़ाती , हार हार कर मुझे जिताती !
रोज गोद में मुझे लिटाती , अपने ख़्वाब भुलाती जाती !!
मेरी इच्छा-भूख के ख़ातिर , आटा रोटी लोई रही है !
दीदी तुमसा कोई नही है !!
आवाजों में मिश्री घोले , रिश्ते सभी सम्भाले वो !
सबके मन में बस जाने की , इच्छा हरदम पाले वो !!
तुझ द्रौपदी से रिश्ते में , कृष्ण आज क्यों गौड़ पड़े हैं ?
क्योंकि सब लीला के पीछे , तेरे कारज मौन खड़े हैं !!
इतना सब दे देने पर भी , तेरी आँखें रोई नही है !
दीदी तुमसा कोई नही है !!
– शशांक तिवारी